उत्तम आर्जव धर्म | जब जीवन में बहुत दुखी हों, परेशान हों, विपत्ति मे हों, हार गये हों तो ये सुनो
उत्तम आर्जव धर्म | जब जीवन में बहुत दुखी हों, परेशान हों, विपत्ति मे हों, हार गये हों तो ये सुनो
आज तीसरा नंबर है चल कपाट बेईमान ध्यान रखना छलक सहारा कौन लेट है कौन है जो माया चारी का सहारा लेट है कौन है जो छलक सहारा लेट है वो कौन है जो कपाट पूर्ण व्यवहार करके अपने कम बनाता है वह कमजोर आदमी होता है जिसके पास शक्ति है ताकत है ना छल कपाट नहीं किया करता इसलिए हमारी तीर्थंकर वह होते हैं जो सर्वशक्तिमान भजरा सब नारायण सहन के स्वामी होते हैं उन्हें चल का सहारा लेना नहीं पड़ता है हमारा सहाना नहीं है यहां पर हर किसी का एक आप मौजूद है ध्यान रखना याद रखना जो जितना कमजोर होगा वो उतना छली होगा वो उतना कपाट करें लेकिन एक बात हमेशा स्मरण में रखना जो दूसरों को छलता है चले उसके साइन में पड़ा करते हैं दूसरों को छलके कम तो निकाल सकते हो दूसरों को छलके अपने कम तो बना सकते हो लेकिन ध्यान रखना दूसरों को छलोगे दूसरों के मुंह पर कालिक पोतने से पहले अपने हाथ कल हो जय करते हैं और दूसरों के लिए जो गद्दा कोड़ता है पहले उसे उसे गद्दे में गुजरा पड़ता है जो दूसरों के साथ चल करता है पहले चल उससे ही हो जय करो सब वातावरण है घर का परिवार का पर भरोसा नहीं है मगर एक दूसरे का भरोसा नहीं है कोई मेहमान ए जाता है बड़ा स्वागत होता है सत्कार होता है आओ भगत होती है अच्छा भजन कराया जाता है लेकिन विश्वास नहीं रखना यदि विश्वास होता ना तो घर के दरवाजे पे ताला डाला तो समझ आता है अंदर तालिका के लिए डालते हैं ध्यान रखना पत्नी की तिजोरी में अलग ताला है पति की अलमारी में अलग ताला है अरे अलमारियां तो छोड़ दो सबके मोबाइल में ताला है बच्चे के मोबाइल में लॉक है बेटे के मोबाइल में लॉक है बेटी की मोबाइल में लव पड़ा हुआ कोई किसी का मैसेज पढ़ नहीं सकता है हर किसी ने अपने आप को बैंड कर रखा है तालों में यही बात लगती है की विश्वास विश्वास है मेहमान है लेकिन फिर भी दिमाग में भरोसा नहीं है किसी का भरोसा नौकर राहत है जान देता है लेकिन हमारे अंदर दुख दुख चला है थोड़ा वॉच करना पड़ता है देखना पड़ता है महिलाओं से पूछो औरंगाबाद की नहीं नासिक वाली तुम्हारी बात तो मुंबई जाकर करूंगा क्योंकि मुझे यहां से मुंबई जाना है और अभी यहां रहना है अभी तो आधा चम्मच सा हुआ है अभी आप बाकी है कितना संडे है एक दूसरे के भीतर कितना डाउट है एक दूसरे के भीतर हमें एक दूसरे पर विश्वास नहीं हुआ करता है नौकर राहत है महिलाओं से पूछो की वही क्या कम करती हो घर में झाड़ू वाली झाड़ू करती है पहुंचे वाली पहुंचे करती है कपड़ा वाला कपड़ा धोती है खाना वाली खाना बनती है तुम क्या करती हो बोले हम बहुत बीजी हैं वो लेक क्यों बोले कम कुछ नहीं है विजय बहुत है जानवर करना बोले कम क्यों नहीं क्या क्या बीजी हो बोले इन सब पे निगरानी रखना पड़ेगा उनको वॉच करना पड़ता है देखना पड़ता है भरोसा नहीं है ना जिंदगी में किसी का किसी पर किसी को और एक बात याद रखना जब हम दूसरों को भरोसा नहीं दे पे तो हमारे अंदर भी दूसरों पर भरोसा कभी नहीं ए सकता है हमें विश्वास नहीं है हमें डाउट लगता है चौमासा हो रहा था ना भरोसा नहीं था क्या होगा चारों तरफ चातुर्मास हैं ले आए तो क्या होगा ललित पार्टी देख लो ये होगा और क्या होगा होता है मानव का नेचर है मैं भी तो सोच रहा था बैठेंगे नहीं बैठेंगे नहीं आएंगे सिविल लगे नहीं लगे हमने कहा जो भी होगा देखा जाएगा देने वाला पारसनाथ लेने वाला [प्रशंसा] की तुमको हमने बुलाया है हमारी बुलाने से तुम आते भी नहीं ध्यान रखना ना मैंने बुलाया है ना कमेटी ने बुलाया है वरना तुम आए हो ध्यान रखना ये भी बड़ी होशियारी मत दिखाना की हम अपने मां से आए हैं अब महिम समझ पड़ी हनुमंत प्रभु कृपा बिन मिल ही एन संता ये भगवान ने बुलाया ईश्वर ने बुला या है दिन भगवान यहां पर बैठे हैं ना उन्होंने खींच है मेरे जीवन की डोर प्रभु खींचे वो अपने और ध्यान रखना यदि वो ना खींचते तो तुम्हारे भाव बने वाले नहीं थे अब वही समझे परी हनुमंत हरि कृपा बिन मिल ही ना सुनते प्रभु की कृपा है जो मैं यहां आया प्रभु की कृपा है घर के बैठ गए होंगे गोरख धंधे में एक प्रभु की कृपा है जो तुमको उसने इस घाट पर बुला लिया है और एक बात याद रखना जो इस घाट पर ए जाता है वो उसे घाट पर अपने आप पहुंच जय करता है उसे पहुंचने में ज्यादा समय हम सबकी नैना पर हो रहे बेड़ा पर हो रहे वरना यहां कैसे इतने सारे खट्टे होते बताओ आप सबको देखो तो ऐसा लगता है की भगवान जब भी मुक्त मुझको मोक्ष हो और जब भी निर्माण की प्रताप हो अकेले ना जाऊं ये सारे मिलकर के एक साथ निर्वाण को प्राप्त करें ऐसे ऐसा निर्माण प्राप्त करें सम्मेद शिखर से नाम आए की औरंगाबाद में एक महाराज आए थे इतने सारे सबर मनी यारी का बन के निर्माण को प्राप्त किया हैं कल्याण को प्राप्त किया हैं चल कपाट नहीं है उसके अंदर इकट्ठा राहत कब निकाल देगा मुझे यहां से टूट गए हैं तो ताली में है पैसा है तो तले में है गने हैं तू तले में है बाहर वालों का ताला नहीं भीतर वालों के तले हैं मान्यवर जिंदगी को थोड़ा सा सत्य निशीथ बनाने का प्रयास करो जिंदगी को ईमानदार बनाने का प्रयास करो एक मार्मिक घटना मेरा एक जगह चातुर्मास हो रहा था एक मां आई मेरे पास बहुत जर जर करके डन लगी मैंने कामता क्या हुआ बोले आज जीवन बेकार हो गया महाराज में राम ऐसा क्या कर लिया क्या हो गया तुमसे क्या अपराध हुआ बोले बस समझ गई की अब दुनिया में कुछ नहीं रखा है उनका हुआ क्या आदमी के दिल में कब थिस पहुंच जाए कुछ का नहीं सकते हैं थोड़ी सी बातें हमारा दुर्व्यवहार आदमी के साइन को छलनी कर दिया करता है दूर इयान आदमी को आदमी से दूर कर दिया करती हैं आज घर में बड़ा महाभारत हो गया कोहराम हो गया अब उसे घर में जान को मां नहीं करता है मेरा ऐसे दिन ए गए कभी एक मां के साथ कर बच्चे रहा करते थे प्रेम से रहते थे आज ऐसा कैसे हो गया की मां उसे घर में नहीं जाना चाहती है बेटा उसे घर में नहीं जाना चाहता है ऐसा ना की वातावरण परिवार का बन गया और यहां बैठ करके हम भगवान की पूजा करते हैं मैं रे मान्यवर ध्यान रखना यदि घर को अच्छे से नहीं बनाया ना तो यहां की पूजा है तुम्हारा कल्याण करने वाली नहीं है यहां की पूजन से उधर होने वाला नहीं है यहां बड़े आनंद है झूठ रहे हैं नाच रहे हैं घर में नृत्य सब सरलता नहीं है की माया चारी है चल कपाट हुआ करता है मैं तो आपसे इतना निवेदन करता हूं मंदिर में शांति बाद में मांगना पहले घर में शांति की स्थापना करना तो मंदिर में शांति प्राप्त होगी घर आसन है बारूद के देर में बैठकर गीत सुन रहे हो ध्यान रखना इस फोटो की स्थिति में बैठकर जीवन के आनंद को बटर होना चाहते हो नहीं पहले मेरा मां शांत होना चाहिए परिवार शांत होना चाहिए फिर मंदिरों में शांति की प्रार्थनाएं होना ध्यान रखना प्रार्थनाएं बहुत हैं भगवान सा आप दिक्कत तो इस बात की है की लड़ते आप घर में हो क्षमा भगवान से मांगते हैं ये कहे को चमक करेंगे विचार करिए मैं बैठा था एक कमरे में एक आदमी आया उसने इतनी जोर से लात मेरी फैट से दरवाजा खुला इनका वो नायमोस्ट तुम्हारा आज नमोस्तु नमोस्तु मैंने कहा ये क्या तरीका है दरवाजा खोलना का ये किस तरह से दरवाजे खोल रहे हैं एक बात बता घर में लड़के आया है क्या बोले आपको कैसे पता मैंने कहा तेरी हरकतें बता रही है या तो पति के आया या पति के आया है इतनी जोर से लात करने की क्या जरूर है मैंने कहा बोले क्या करूं महाराज गलती हो गई तो मैंने कहा उसे दरवाजे से माफी मांग है बोले दरवाजे से क्यों आपसे माफी मांग रहा हूं इनका जब तक दरवाजा माफी नहीं करेगा तब तक पलक सागर भी माफ करने वाला नहीं है जाके दरवाजे से माफी मां बोले वो तो अजीब है वो तो पुद्गल है उससे क्या माफी मांगना है वो क्या समझेगा अरे मैंने कहा पागल माफी मांगने में अजीब दिखाई दे रहा है अरे लात मारता तब सोचता अजीब को क्या लात मारना पुद्गल को क्या लात मारना है समझ नहीं देखा तूने क्रोध करते समय नहीं देखा क्षमा मांगने में आदमी बुद्धि लगता है तारक लगता है है समाज तोड़ते समय ध्यान नहीं आता इसको तोड़ने से क्या मिलेगा मुझे समाज फेंकते समय ध्यान नहीं आता है ये अजीब है उसे पर क्रोध करने से मुझे क्या मिल जाएगा उसे पर गुस्सा करने से क्या मिल जाएगा मेरे महावीर तो कहते हैं की अच्छे तन से भी जो चेतन जैसा व्यवहार करता है वो दास लक्षण धर्म का स्वामी हुआ करता है देखना पत्थरों में भी जो जीव होते समय सोच लेट है की दरवाजा है इस पर लात नहीं मारना चाहिए लेकिन आदमी क्षमा मांगते समय तारक लगता है अपराध करते समय नहीं सोचता है विचार करूंगा सुबह से घर में बहुत झगड़ा हुआ समाज भी क्या था एक सोनी की अंगूठी घर पर राखी थी पति ने कहा अंगूठी यहां राखी थी कहां गई पत्नी ने कहा मुझे भी नहीं पता वहां का पड़ोस तो पता ही नहीं चला कौन है कौन नहीं है कैसा नादान है आदमी है समाज के लिए दिल तोड़ देता है एक दूसरे का समाज रहे या ना रहे संबंध मधुर रहना चाहिए अपने लेकिन आदमी ने जब जब संबंधों को टोडा है वो समाज की वजह से टोडा है दो भाई लड़ते हैं मकान की वजह से दो भाई में धन दौलत की वजह से आत्मा की वजह से संबंधों की वजह से नहीं होता ध्यान रखना हमारे समाज के लिए हमने सम्मान को तोड़ दिया है मैं कहता हूं समाज हजार टूट जाते सम्मान बनाए रखो जिंदगी इस का नाम हुआ करता है समाज तो आज है कल नहीं रहेगा इतना विवाद हुआ बोले अंगूठी कहां गई अंगूठी मिलन चाहिए इतना विवाद हुआ इतना विवाद इतनी लड़ाई झगड़ा हो गए पत्नी ने कहा मैं खाना नहीं बनाऊंगी पति ने कहा मैं खाना नहीं खाऊंगा एक अंगूठी के लिए होगी इससे ज्यादा कौन सी होगी उसके लिए आदमी ने इतना झगड़ा इतना झगड़ा पति ने कहा की अंगूठी गई कहां पत्नी बोली इस घर में केवल तीन मेंबर हैं तुम हो मैं हूं और तुम्हारी मां है मैंने ली नहीं है मुझे चुराने की क्या जरूर है और तुम इतना पूछ रहे हो तो मुझे नहीं लगता की तुमने कुछ किया होगा लगता है समझ गए क्या बोल दो घर में तो खुलेआम बोल देते हैं अभी औलाद नहीं हुई है नौकर चक्र कुछ नहीं है पत्नी ने कहा की मुझे लगता है कहानी ना कहानी ये अंगूठी मां जी ने गया की बेटे को लगा बेटे उसने कहा तुम क्या समझते हो की मैंने अंगूठी है
लेकिन एक बात याद रख तू मेरी मां पर इल्जाम मत लगा मेरी मां ऐसा कम जिंदगी में कभी नहीं कर शक्ति है ऐसे कैसे का सकते हो कर नहीं शक्ति है जब तीन ही सदस्य घर में है निश्चित शक्ति निगाहें मां पर जाति है मां ने ही अंगूठी यहां वहां राखी है एक बार पूछो तो सही पता है उठा के रख के कहानी भूल ये हो सकता नहीं भीतर तो कुछ रही चल रहा है यही होता है क्षमा यचहरी यही होता है चल कपड़ यही होता है उसने ही उठाइए बात भी आया तो पति ने एक चंद नीचे गाल पर मारा इल्जाम लगाने की कोशिश मत करो पत्नी ने पूछा इतना विश्वास है तुम्हें अपनी मां पर बोले हां बहुत विश्वास है क्यों बोले अभी 6 महीने हुए मां ने मुझे पालने में 25 बरस तपस्या की है ध्यान रखना उसने मुझे पाल पोस्ट करके बड़ा किया है मेरी मां वी मां है मुझे याद है जब मेरे पिता नहीं तेज धरती पर मेरी मां ने कैसे मेहनत मजदूरी करके मुझे पाल है ध्यान रखना मेरी मां ने गरीबी के दिन देखें हैं मेरी मां के पास दो वक्त की रोटी भी नहीं थी तो भी मेरी मां मुझे रोटियां खिलाया करती थी और एक समय तो है की जब दी बी दी थी मां डिब्बा बैंड करती थी और एक रोटी मेरी थाली में रखती थी वो जब मैं कहता था की मां तूने रोटी नहीं खाई तो वह कहती थी डिब्बे में राखी है बाद में का लूंगी और मैं समझ जाता था की डिब्बे में कोई रोटी नहीं है यदि मां बेटे की दिल की बात समझती है तो बेटा भी मां के दिल की बात समझा करता है समझ गया की डिब्बा नहीं खुला रहा है इसका मतलब उसमें रोटी नहीं है और पगली तुझे मालूम है मां एक रोटी मेरी थाली में रखती थी मैं भी इस का बेटा था आदि रोटी खाता था और कहता था मेरा पेट भर गया है मां में बाहर खाकी आया हूं मां मैं दोस्तों के बीच में का कर आया हूं मुझे नहीं खाना है मेरा पेट भर है एक बात याद रखो जी मां ने उसे मां के लिए मैं आदि रोटी थाली पे छोड़ना था मेरी मां ने आदि रोटी खाकर के मुझे पाल है अरे आदि रोटी नहीं जो मां अपने बेटे की झूठी रोटी खाकर के बच्चे को पलटी है और जिसने कभी आपको आभा से महसूस नहीं किया है जिसने मेरी झूठी रोटी खाकर आज मुझे कोई भी ताकत ए जाए मेरी मां पर मुझे विश्वास पैदा नहीं कर सकता है मेरी मां की अंगूठी उसने उठाई होगी एक बात ध्यान रख एक साथ मुझे समझ नहीं आया ये शब्द मेरी मां ने जब सुना है उसे मां की आंख से तप तप आंसू गियर उसने कहा बेटा तू झूठी रोटी का कर्ज चुका रहा है याद ही रोटी का कर्ज चुका रहा है मुझे समझ नहीं ए रहा है ध्यान रख क्योंकि रोटी का का करके मैन पाल है उसने कहा तुझे 6 महीने मेरी मां पर अब विश्वास भरो मान्यवर ऊष्मा को उसे दिन लगा की अब मुझे इस घर में नहीं रहना चाहिए ध्यान रखना मां आप मकान नहीं चाहते धन दौलत रुपया पैसा नहीं चाहते को अपने मां-बाप पर ही विश्वास ना हो मैं तो कहता हूं ऐसी औलाद को धर्म की पूजा करने का हक नहीं होना चाहिए था किस बात पर हक जमाते हो किस बात पे अर्थ चढ़ते हो यहां पर मान्यवर ऐसा आदमी है की बना लूंगा मेरी महावीर का दर्शन कहता है जो भी कम दुनिया में बनते हैं ना वो पुण्य के उदय से बनते हैं चल कपाट से कोई कम बंता नहीं है पुण्य का उदय होगा कम बन जाता है जो छलक सहारा देगा एक बात याद रखना ये जो चल है ना छल्वी तभी सफल होता है जब आत्मा में पुण्य का उदय हुआ करता है ना हो तो चल कपाट भी तुम्हारा साथ है नहीं देता है ध्यान रखना जब तक तेरे पुण्य का बीता नहीं कार तब तक तुझको माफ है अवगुण कर ले हजार ध्यान रखना
Click Here
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें