उत्तम मार्दव धर्म | अभिमान करने वाले लोग ये ज़रूर सुने - ज्ञान का अहंकार तो मुर्ख को भी हो जाता है

 


उत्तम मार्दव धर्म | अभिमान करने वाले लोग ये ज़रूर सुने - ज्ञान का अहंकार तो मुर्ख को भी हो जाता है

क्रोध तब आता है जब आदमी असफल होता है असफलता पर आदमी को क्रोध आता है वो सफलता पर आदमी को माना आता है ध्यान रखिए भगवान महावीर कहते हैं सफलता भी खतरनाक है और असफलता भी खतरनाक है सबसे आदमी अहंकार में जीता है और जो सफल नहीं होता है वह क्रोध में जिया करता है महावीर कहते हैं जो सफलता और असफलता से ऊपर उठ जाता है वो उत्तम मालदा धर्म का स्वामी हो जय करता है ना सफलता से राज है ना असफलता से देश है उसको समुद्रष्टि कहा जाता है आज की साधना यह 10 के 10 धर्म श्रावक के लिए नहीं है यह मुनियों के 10 धर्म हुआ करते हैं श्रावक उनकी आराधना करता है आपके जीवन में 10 धर्म कभी नहीं ए सकते हैं 10 धर्म की आराधना कर सकते हो लेकिन उत्तम क्षमा भी धर्म तो मनी महाराज के हुआ करता कितने अच्छी ताली बजाई बैक गए हम महाराज जान उनका धर्म जान अपन तो करो क्रोध जमकर क्रोधी व्यक्ति चाहता है की दुश्मन मा जाए दुश्मन को मारो प्रताड़ित करो उसको कष्ट दो दुनिया में ना रहे तो अच्छा है क्रोध मृत्यु मांगता है लेकिन मां जो होता है वह मारता नहीं है मां थोड़ा और अलग क्वालिटी का है क्रोध में दुश्मन को मारा जाता है ओमान कहता बेटा मारना मत मारना मत तो क्या किया जाए मैं बड़ा और तुम छोटे इसका नाम मां है क्रोध में मारा जाता है मां में दबाया जाता है तुम जिंदा तो रहो हम तो भगवान से प्रार्थना करेंगे की जग जग जियो लेकिन हमसे ऊपर जान की कोशिश नहीं करना ध्यान रखना हमसे डब करके रहो हमसे चुप करके रहो हमारे सामने अकड़ना की जरूर हम पकड़ने तुम नहीं है यह मां की तासीर है ध्यान रखना नीचे गति करता है आदमी की किस बात पे करते हो तुम क्या है तुम्हारे पास बताओ औरंगाबाद वालों क्या है तुम्हारे पास है क्या चक्रवर्ती को जानते हो यह वाला नहीं ओरिजिनल रानी यह है अपनी एक ही है ना रानी चक्रवर्ती की तुम्हारी एक उससे भी नहीं बंटी वो 96 हजार से बनाते हैं तुम्हारी एक से भी नहीं बन रही है वो भी तू तू मैं मैं चलती रहा करती है ध्यान रखना लड़ाई ये वो झगड़ा विवाह [संगीत] चक्रवर्ती के पास 18 84 लाख हाथी तुम्हारे पास कितने एक दिन एक भी हाथी नहीं कमल है चक्रवर्ती के पास 18 करोड़ घोड़े कितने घोड़े होते हैं क्या बताओ घोड़ा छोड़ो हाथी छोड़ो गधा रखना की हैसियत नहीं हूं चक्रवर्ती की भी आप बना करते हो ध्यान रखना अपनी औकात क्या है अपने पास है क्या अपने ऐसा क्या भटूरा है जी पर अकड़ करता है आदमी इतना कुछ नहीं प्रकार भी अकड़ इतनी है इतनी अकड़ है जितनी अकड़ साहब चक्रवर्ती में भी नहीं होगी कितने अकड़े आकडे घूमते हो छाती चौड़ी करके घूमते हो मान्यवर ध्यान रखना चक्रवर्ती दिग्विजय करने जाता है सत्कंद जितने जाता है छह खंड का दिलीप भाई कोई खंड नहीं खंड खंड चक्रवती 6 खंड का राजा होता है तुम्हारा दो खंड का मकान है वो भी बरसात में छूटा है ध्यान रखना लिख करता है जब वह लौटता है ना तो विजय पर्वत पर जाता है और बड़ी गर्व के साथ हम के साथ की संपूर्ण पृथ्वी का कोई अधिपति है तो मैं हूं संपूर्ण प्रति सम्राट है तो वह मैं हूं इस साड़ी पृथ्वी को मैंने जीत लिया है जैसे ही भारत जी महाराज पहुंचने हैं देखते हैं सिलपत अपना नाम लिखने के लिए नाम चाहिए ना नाम नहीं तो सब बेकार ध्यान रखना शीला पाठ प्रणाम मैं शातखंड बजे ता चक्रवर्ती भारत सम्राट जैसे लिखना है नाम लिखने को जगह नहीं इतनी चक्रवर्ती हो गए भारत जी महाराज तुम कहां किस खेत की मूली हो तुमसे पहले असंख्यात चक्रवर्ती इस धरती पर हो गए हैं असंख्यात लोगों ने इस धरती पर हुकूमत करने की सोची है लेख सब कल के कल में सम जाते हैं ध्यान रखना भारत जी महाराज में एक नाम कहां लिखूं मंत्री सेनापति का रहे हैं सम्राट नाम लिखो अरे मैं लिखूं कहां इस सिलपत पर तो नाम ही नाम लिखे हुए हैं मेरे नाम की जगह नहीं है बोले महाराज एक कम करो बोले क्या बोले दूसरे चक्रवर्ती का नाम मिटा और अपना नाम लिखकर के दुनिया से चले जा मित दो पुराने का नाम भारत जी ने कहा सेनापति यदि दूसरे का नाम मटकर मैं अपना नाम लिखना हूं तो इसका मतलब है कोई दूसरा फिर आएगा वह मेरा भी नाम मित करके चला जाएगा कितने नाम लिखेंगे और कितने नाम मिटेंगे भारत जी के हाथ से छेनी हथौड़ी छठ जाति है की कैसा है ये व्यवहार कैसा है जीवन की मेरा नाम भी मिटाने वाला इस धरती पर कोई पैदा हो जाएगा ध्यान रखें भारत तो पहले चक्रवर्ती है 12 चक्रवती हुआ करते हैं मेरा भारत जी सोच में पद गए मालूम है सम्राट चक्रवर्ती भारत को सबसे पहले बैग वही हुआ करता है कितने आए कितने चले गए तेरे जैसे लाखों आए लाखों यीशु माटी ने खाए तेरे जैसे लाखों आंखों ही काटने खाए रहना मेरे बंदे कुटीर तेरी शान रे मत कर तू अभिमान मत कर तू अंधे झूठी तेरी शान रे मत कर तू अभिमान तेरे पर हीरे मोती मेरे मां मंदिर में ज्योति तेरे पास है हीरे मोती मेरे मां मंदिर में ज्योति कौन हुआ हनुमान रे बंदे झूठी तेरी शान रे मत कर तू अभिमान मत कर तू अभिमान रे बंदे झूठी तेरी शान रे मत कर तू अभिमान तेरे पास हीरे मोती है भारत जी महाराज नहीं होते हैं जिसके भीतर प्रभु की ज्योत जल करती है दुनिया में वह सबसे ज्यादा महान हुआ करता पर्यूषण पाव में प्रभु नाम की ज्योति जलाओ बाहर के दिए तो हर बार है जी पर्यूषण में भीतर जालना है वह आस्था का दिया ध्यान रखना वह प्रेम का दिया प्रभु के समर्पण का दिया जो प्रभु के लिए समर्पित होता है उसके जीवन में मार दो धर्म का अवतरण हुआ करता है ध्यान रखना अहंकार से बचाना है तो प्रभु की आस्था में डब जो भक्ति में डब जो समर्पण में डब जो इसीलिए तो औरंगाबाद में मैंने कहा की इस बार रंगीन कपड़े नहीं पहनेगी अरे अमीर हो या गरीब सब प्रभु नाम की ज्योति में धवल वस्त्र में यहां पर बैठे रहेंगे कौन सी है जो धवल वस्त्र की आम हुआ करती है श्रृंगार की वो लोग देखकर के तुम्हारे प्रति सम्मान से भर रहे हैं बहुमन से भर रहे हैं और पूरे औरंगाबाद में कहां जा रहा है जेहनियों का कोई त्योहार आया है जेनी की कोई तपस्या अहंकार का विसर्जन कपड़े भी अहंकार हैं आभूषण भी अहान कर महावीर ने सब चुडा दिए सब उतार कर फेक दो परमात्मा की साधना में ली रहने का प्रयास करिए

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